मिज़ाज

हाँ, ये सच है कि जिंदगी के दुसरे पारी में मेरे अन्दर का लेखक जागा और इसका सबसे बड़ा श्रेय एक प्यारी-सी भोली लड़की को जाता  है | मैं उसका बहुत आभारी हूँ | अगर वो मेरी ज़िन्दगी में आकर न जाती तो शायद इस  अनिल कुमार राय की मुलाक़ात अनिल के राय से नहीं हुई होती | पर ये भी सच है कि लिखने की चाहत मेरे मन में दसवी के बाद ही पनप चुकी थी जिसे बाद में इश्क़ ने सीचा |
  लिखने का बीज बोने वाला था, मेरा मिज़ाज | आस-पास के विभिन्ताओं को देखकर बदलता मिज़ाज | राजनीतिक भाषणों को सुनकर ख़ुद से लड़ता मिजाज़ | फिल्मों को देखकर हँसता, गुनगुनाता और सोचता हुआ मिज़ाज |
सबसे मुश्किल मेरे लिए मेरा मिज़ाज ही रहा जो मुझे हमेसा अशांत रखा | जो देखता था, उसे तुरंत लिखना पसंद था | कारण था, मेरा बदलता मिजाज़ | बस बदलती मिज़ाज को आपलोगों के साथ बाटना चाहता हूँ | यहाँ भी आते रहिएगा, मेरे मिज़ाज को भापते रहिएगा | 
  लिंक ये रहा  ..मिज़ाज

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